सिद्ध श्री बालाजी महाराज मंदिर, सलेमपुर का इतिहास और निर्माण की कथा भक्तों के लिए विशेष महत्व रखती है। यह मंदिर उत्तर प्रदेश के सलेमपुर क्षेत्र में स्थित है और यहां भगवान हनुमान (बालाजी) की पूजा बड़े श्रद्धा और भक्ति के साथ की जाती है।
मंदिर की स्थापना का उद्देश्य: यह मंदिर धर्म और संस्कृति के प्रचार-प्रसार के लिए स्थापित किया गया। इस स्थान को एक दिव्य शक्ति का अनुभव करने और श्रद्धालुओं के कल्याण के लिए चुना गया। स्थापना काल: मंदिर की स्थापना के सही समय की जानकारी स्थानीय किंवदंतियों और भक्तों की कहानियों पर आधारित है। यह माना जाता है कि यह स्थल आध्यात्मिक ऊर्जा और चमत्कारों का केंद्र रहा है। मंदिर से जुड़ी पौराणिक कथा: ऐसा कहा जाता है कि इस स्थान पर भगवान हनुमान ने अपनी दिव्य शक्ति का प्रदर्शन किया था, जिससे भक्तों की समस्याएं दूर हुईं। इसके बाद यहां बालाजी महाराज की मूर्ति स्थापित की गई।
स्थानीय योगदान: मंदिर के निर्माण में स्थानीय लोगों का विशेष योगदान रहा। यह मंदिर उनके दान और सेवा से बनाया गया। मूर्ति स्थापना: बालाजी महाराज की मूर्ति को खास धार्मिक विधियों और मंत्रों के साथ स्थापित किया गया। आधुनिक स्वरूप: मंदिर को समय के साथ विस्तार और नवीनीकरण मिला। इसमें एक बड़ा सभागार, पूजा स्थल, और श्रद्धालुओं के लिए सुविधाएं बनाई गईं। प्राकृतिक सौंदर्य: मंदिर का वातावरण प्राकृतिक सौंदर्य से भरा हुआ है। यहां शांति और सकारात्मक ऊर्जा का अनुभव होता है। भोजन वितरण: मंदिर में भंडारे का आयोजन होता है, जिसमें हर श्रद्धालु को प्रसाद दिया जाता है। आध्यात्मिक शिक्षा: मंदिर के माध्यम से योग, ध्यान, और धार्मिक शिक्षा दी जाती है। सामाजिक सेवाएं: मंदिर स्थानीय जरूरतमंदों की सहायता के लिए भी कार्य करता है। सांस्कृतिक कार्यक्रम: धार्मिक कथाओं, कीर्तन और भजन के आयोजन यहां नियमित होते हैं।
गीता में भगवान् ने कहा है- "जब-जब धर्म की हानि होती है, तब-तब मेरी कोई शक्ति इस धरा-धाम पर अवतार लेकर भक्तों के दुःख दूर करती है और धर्म की स्थापना करती है।" भक्त-भय-भंजन, मुनि-मन रंजन अंजनीकुमार बालाजी का घाटा मेंहदीपुर में प्रादुर्भाव इसी उद्देश्य से हुआ है। मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान् श्री राम ने परम प्रिय भक्त शिरोमणि पवनकुमार की सेवाओं से प्रसन्न होकर उन्हें यह वरदान दिया- "हे पवनपुत्र ! कलियुग में तुम्हारी प्रधानदेव के रूप में पूजा होगी।" घाटा मेंहदीपुर में भगवान महावीर बजरंग बली का प्रादुर्भाव वास्तव में इस युग का चमत्कार है।
इस प्रकार इनका सेवाकाल श्री बालाजी घाटा मेंहदीपुर के इतिहास का स्वर्ण युग कहलाएगा। प्रारंभ में यहाँ घोर बीहड़ जंगल था। घनी झाड़ियों में शेर-चीते, बघेरा आदि जंगली जानवर पड़े रहते थे। चोर-डाकुओं का भी भय था। श्री महंतजी महाराज के पूर्वजों को जिनका नाम अज्ञात है, स्वप्न हुआ और स्वप्न की अवस्था में ही वे उठकर चल दिए। उन्हें पता नहीं था कि वे कहाँ जा रहे हैं और इसी दशा में उन्होंने एक बड़ी विचित्र लीला देखी। एक ओर से हजारों दीपक जलते आ रहे हैं। हाथी-घोड़ों की आवाजें आ रही हैं और एक बहुत बड़ी फौज चली आ रही है। उस फौज ने श्रीबालाजी महाराज की मूर्ति की तीन प्रदक्षिणाएँ कीं और फौज के प्रधान ने नीचे उतरकर श्री महाराज की मूर्ति को साष्टांग प्रणाम किया तथा जिस रास्ते से वे आए थे उसी रास्ते से चले गए। गोसाँई जी महाराज चकित होकर यह सब देख रहे थे। उन्हें कुछ डर सा लगा और वे वापिस अपने गाँव चले गए किन्तु नींद नहीं आई और बार-बार उसी विषय पर विचार करते हुए उनकी जैसे ही आँखें लगी उन्हें स्वप्न में तीन मूर्तियाँ, उनके मन्दिर और विशाल वैभव दिखाई पड़ा और उनके कानों में यह आवाज आई - "उठो, मेरी सेवा का भार ग्रहण करो। मैं अपनी लीलाओं का विस्तार करूँगा।" यह बात कौन कह रहा था, कोई दिखाई नहीं पड़ा। गोसाँई जी ने एक बार भी इस पर ध्यान नहीं दिया। अन्त में श्री हनुमान जी महाराज ने इस बार स्वयं उन्हें दर्शन दिए और पूजा का आग्रह किया।
"धर्मेण हन्यते ब्याधिः"
अर्थात् धर्म के प्रभाव से सभी विपत्तियाँ एवं बीमारियाँ दूर होती हैं। मैं समझता हूँ शायद यहाँ की लीला का वास्तविक रहस्य यही है।